ज़िंदगी (Zindagi | Life)

दहलीज़ पर खड़ी थी…कुछ प्रश्न लिए हुए।

नज़रें मिलीं तो पूछा, बात क्या है आख़िर?

उसने कहा रहने दो…तुम नहीं समझोगे ।।


फिर कुछ देर बाद…खुद ही बोली

आज तक हम साथ चलते आए हैं…

क्या कभी आगे चलने की ख्वाहिश,

या फिर छूट जाने का डर नहीं लगा?


मैंने कहा…जब कभी आगे चले…

तो तुम्हारी कमी खली।

जब पीछे रह गए…तो तुम्हारी कशिश रही।

फिर समझ में आया कि तुम्हारा अहसास…

तो मौत आने पर ही छूटेगा,

फिर क्यों ना बस साथ ही चलें

और सुकून से ज़िंदगी जिएँ?


मेरी बात सुन…वो पास आ बोली,

ऐसा क्या है मुझमें, जो छोड़ी नहीं जाती?

मैंने कहा, यही तो समझ नहीं पाया हूँ अब तक,

और बिना समझे…कोई बात मुझसे छोड़ी नहीं जाती।।


  • Shukla | 2021